By DAYANAND MOHITE | published: नवंबर 28, 2019 12:24 PM 2019-02-12T14:15:30+5:30
शहर : मुंबई
कहते हैं कुछ दोस्ती कृष्ण और सुदामा के जैसे होती है..जहां एक और भगवान कृष्ण ने अपने निर्धन मित्र सुदामा के लिए राजपाट छोड़कर उसके घर तक पहुंच जाते हैं. ऐसी ही एक कहानी है उद्धव ठाकरे और घनश्याम शांताराम बेडेकर की 17 वर्ष की आयु की दोस्ती 40 वर्ष का लंबा सफर तय करती है. कृष्ण और सुदामा जैसी ही कुछ कहानी है. 1976 में जेजे स्कूल आफ आर्ट्स में उद्धव ठाकरे और घनश्याम बेडेकर दोनों अपनी-अपनी कला में निपुणता पाने के लिए एडमिशन लेकर आए.
आंखों में खुशी के आंसू लिए घनश्याम कहते हैं कि उद्धव शिवसेना प्रमुख है महाराष्ट्र समेत देश की राजनीति का एक बड़ा हिस्सा है और अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन रहे हैं लेकिन आपको बता दूं कि 40 वर्षों की दोस्ती वह एक मैसेज पर निभाते है.नशे मैसेज बल्कि पूरा काम होने तक फॉलोअप भी लेते हैं.आज इतने बड़े नेता हैं और अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं लेकिन 40 वर्ष पुराने अपने मित्र के एक मैसेज पर उनकी दरियादिली आपको बताना जरूरी है. घनश्याम कहते हैं कि कुछ समय पहले उनके बच्चों के एडमिशन नहीं हो रहे थे.
ऐसे ने कहा कि मैं बड़ा परेशान था इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन के लिए 10 लाख-15 लाख का डोनेशन इकट्ठा कर पाना मेरे लिए मुश्किल था. ऐसे में मैंने उद्धव ठाकरे को मैसेज किया. जिसके तुरंत बाद उद्धव ने मैसेज का रिप्लाई दिया कि "डोंट वरी आई विल ट्राई "
घनश्याम के बताते हैं कि उनका यह मैसेज उन्होंने अपने घर की दीवार पर लिख डाला था....इतना ही नहीं मैसेज भेजने के बाद उसी रात को 11:00 बजे उद्धव ने रात को फोन किया और बच्चों के एडमिशन के कॉलेजेस की डिटेल ली....फिर क्या था एक बच्चे का इंजीनियरिंग और दूसरे का आर्किटेक्चर में एडमिशन हो गया...रोते हुए घनश्याम कहते हैं कि वह मेरे कृष्ण है मैं सुदामा हूं.. उद्धव बहुत ही अच्छे इंसान हैं ...कॉलेज के जमाने से ही लोगों का ध्यान रखना लोगों को साथ लेकर चलना यह क्वालिटी उनमें थी.
घनश्याम बताते हैं कि कॉलेज में एडमिशन के 1 साल तक किसी को पता नहीं था कि यह बालासाहेब ठाकरे के बेटे हैं ..1976 में जब 17 वर्ष की आयु में जेजे स्कूल आफ आर्ट्स में उद्धव ने एडमिशन लिया ...बिल्कुल साधारण से रहने वाले उद्धव ठाकरे हर रोज चार-पांच लोगों का ,जो दोस्तों का ग्रुप हुआ करता था ...उसके लिए टिफन लाते थे हर्बल लाइन की ट्रेन पकड़कर बांद्रा से सीएसटी आते हैं ..उनके अंदर मां साहेब की क्वालिटी थी ...एक वाकय का ज़िक्र करते हुए घनश्याम बताते हैं कि कॉलेज में प्रोफेसर की स्ट्राइक हो गई थी....ऐसे में सभी ने उद्धव से कहा कि वह बालासाहेब ठाकरे को बुलाए..तो काम हो जाएगा.
दो-तीन महीने तक चल रही स्ट्राइक के बारे में उद्धव ने खुद बालासाहेब को नहीं बताया ..बल्कि किसी और के माध्यम से जब बालासाहेब को इस बारे में पता चला ,तो उन्होंने आकर प्रोफेसर को समझाया अपने तरीके से. . . जिसके बाद दूसरे दिन से क्लास शुरु हो गए.. लेकिन गुस्से की वजह से उस साल उधव ठाकरे को फेल कर दिया गया.....हालांकि घनश्याम भी बताते हैं कि फाइनल ईयर में उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र में टॉप किया था..
घनश्याम बताते हैं कि उद्धव ठाकरे पहले भी मुंह पर इसी तरह से हाथ रख कर बात करते थे और उनकी स्टाइल आज भी नहीं बदली है.आज भी उद्धव जब भी घनश्याम से मिलते हैं तो उनके लिए एक मराठी गाना उनके नाम से संबोधित करते हुए गाते हैं "घनश्याम सुंदरा श्रीधारा"
40 वर्षों में जब भी उद्धव ठाकरे से मुलाकात होती है वही कॉलेज के दिन घनश्याम को याद आते हैं ...सामना अखबार जब 1988 के बाद शुरू हुआ था..तब भी उद्धव ठाकरे ने घनश्याम को ज्वाइन करने के लिए कहा था ...लेकिन अपनी चलती नौकरी को छोड़ कर जाना उन्होंने उस समय मुनासिब नहीं समझा.....आज अपने उस कृष्ण के ऑफर को ठुकरा ने का दुख घनश्याम के मन में है.चाहे जो भी हो अच्छा दोस्त हर परिस्थिति में अपने दोस्त की मदद के लिए तत्पर रहता है और उद्धव ठाकरे की घनश्याम के साथ वाली दोस्ती कृष्ण सुदामा की दोस्ती से कम नहीं है.. कॉलेज के दिनों में कैमरे के प्रति प्यार घनश्याम और घनश्याम के श्याम यानी कि उद्धव ठाकरे में अभी तक बना हुआ है. आपको बता दें कि घनश्याम एक निजी अखबार के साथ कई वर्षों तक कार्यरत रहे और रिटायर हुए.
हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था धीमी हो गई है, लेकिन आर्थिक मंदी के कोई संकेत नह....
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